बेसर शैली और नायक शैली की विशेषता

नायक  शैली की विशेषताएं  निम्नलिखित है

 नायक शैली की शुरुआत 16वीं शताब्दी से लेकर 18वीं शताब्दी के बीच नायक शासकों के अधीन विकसित हुई

नायक सहेली को मदुरई शैली के नाम से भी जाना जाता है

नायक सहेली द्रविड़ शैली के ही समान है लेकिन इसमें इस्लामी प्रभाव अधिक दिखलाई पड़ता है
 नायक शैली बरामदे के साथ साथ गर्भगृह के चारों ओर बड़े-बड़े गलियारों का निर्माण करता है जिसे प्रक्रम कहा जाता था

नायक शैली में छत दार प्रदक्षिणा पथ का निर्माण होता था

नायक शासकों के द्वारा बनाए गए गोपुरम सबसे बड़े में से एक है इसका एक बहुत महत्वपूर्ण उदाहरण मदुरई के मीनाक्षी मंदिर है जो नायक सहेली की चरम सीमा को दर्शाती है

 मंदिरों में जगह-जगह बारीक नक्काशी की जाती थी




बेसर शैली की विशेषताएं निम्नलिखित है

 बेसर शैली सातवीं शताब्दी के मध्य में चालू किस शासकों के अधीन इस शैली का पदार्पण हुआ 
इस शैली को कर्नाटक शैली भी कहा जाता है 
बेसर शैली एक मिश्रित शैली है जिसमें नागर शैली और द्रविड़ शैली दोनों की विशेषताएं पाई जाती है
 नागर शैली और द्रविड़ शैली दोनों को मिलाकर एक बेसर शैली का विकास किया गया 
बेसर शैली में विमान और मंडप को ज्यादा महत्व दिया जाता है 
बेसर शैली में खुले प्रदक्षिणा पथ होते थे 
बेसर शैली में खंबो दरवाजों और छत को बारीक नक्काशी से सजाया जाता था 

बेसर शैली को संरक्षण देने वाले तीन प्रमुखराजवंश
 बदामी 
कल्याणी 
और चालुक्य है

बेसर शैली के योगदान में राष्ट्रकूट ने एलोरा का कैलाश मंदिर भी बनवाया
 बेसर शैली के योगदान में होयसल वंश वालों ने भी मंदिरों का निर्माण करवाया  -  हलीबिड का मंदिर,  बेलूर का मंदिर इत्यादि
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