द्रविड़ शैली की विशेषताएं

द्रविड़ शैली की विशेषताएं निम्नलिखित प्रकार से है 

द्रविड़ शैली का विकास दक्षिण भारत में चोल शासकों के संरक्षण में हुआ 
द्रविड़ शैली में पल्लव वास्तुकला की निरंतरता थी जिससे कुछ बदलाव करके इसे मंदिर की वास्तुकला की द्रविड़ शैली के रूप में जाना जाने लगा

 नागर शैली के विपरीत द्रविड़ शैली में मंदिर ऊंची चारदीवारी से घिरे होते थे 
द्रविड़ शैली में मंदिर के सामने की दीवार एक ऊंचा प्रवेशद्वार होता था जिसे गोपुरम कहा जाता था 
द्रविड़ शैली में मंदिर परिषद का निर्माण पंचायतन शैली में किया जाता था जिसमें एक प्रधान मंदिर तथा चार गैण मंदिर होते थे 
द्रविड़ शैली में मंदिरों में पिरामिड नुमा शिखर होते थे जो घुमावदार नहीं बल्कि ऊपर की तरफ सीधे होते थे शिखर को विमान कहा जाता था

 विमान  के शीर्ष पर एक अष्टकोण आकार का शिकार होता था 
नागर शैली के मंदिर में लगे कलस समान होता था लेकिन या गोलाकार नहीं होता था
 द्रविड़ शैली में केवल मुख्य मंदिर के शीर्ष पर विमान होता था द्रविड़ शैली में सभी हाल गर्भ गृह में एक गलियारे द्वारा जुड़ा होता था 
द्रविड़ शैली के मंदिर में प्रवेश द्वार पर द्वारपाल मिथुन और यक्ष की मूर्तियां होती थी 
द्रविड़ शैली में मंदिर परिषद के अंदर एक जला से भी होता था जलाशय द्रविड़ शैली की एक अद्वितीय विशेषता थी

 उदाहरण के लिए बृहदईश्वर का मंदिर ,चोल पुरम मंदिर  
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