सोलंकी शैली और खुजराहो शैली की विशेषताएं



खुजराहो शैली की विशेषताएं निम्नलिखित है

 खुजराहो सैली का जन्म भारतवर्ष के मध्य क्षेत्र यानी दिल के क्षेत्र जो कि उस समय चंदेल शासकों का क्षेत्र होता था जिसमें चंदेल शासकों ने मंदिर का निर्माण करवाया और एक अलग शैली की विकास हुई जिसे खुजराहो शैली के नाम से जाना जाता है
 खुजराहो की शैली में मंदिरों के बाहरी और भीतरी दीवारों पर बड़ी मात्रा में बारीक से नक्काशी की गई है 
जिसमें कामसूत्र से प्रेरित मूर्तियों को दर्शाया गया है
 यह मंदिर बलुआ पत्थर से निर्मित हुए हैं 
इन मंदिरों में तीन कक्ष होते थे 
गर्भगृह
 मंडप
 अर्ध मंडप 

कुछ मंदिरों में गर्भगृह तक जाने के लिए गलियारा होता था जिसे अंतराल कहा जाता था 
आमतौर पर मंदिर पूर्व मुखिया उत्तर मुखी होते हैं
 मंदिर निर्माण में पंचायतन शैली का पालन किया गया है 

सहायक मंदिरों में भी रेखा प्रसाद शेखर होते थे जिसमें मंदिर समूह एक पर्वत श्रृंखला समान प्रतीत होते थे
 खुजराहो का मंदिर का उदाहरण  -  कंदरिया महादेव का मंदिर लक्ष्मण मंदिर इतिहास प्रसिद्ध है



सोलंकी शैली की विशेषताएं निम्नलिखित हैं 

सोलंकी शैली का विकास गुजरात और राजस्थान में हुआ है सोलंकी शैली का विकास सोलंकी शासकों के संरक्षण में विकसित हुई है
 सोलंकी शैली की दीवारों में नक्काशी रहित होती थी 
गर्भगृह अंदर और बाहर दोनों तरफ से मंडप से जुड़ा होता था बरामदे में सजावटी धनुष के आकार के द्वार होते थे जिन्हें तोरण कहा जाता था
 इन मंदिरों में एक अनूठी विशेषता है कि मंदिर परिषद में एक बड़ी बावड़ी है जिसे सूर्य कुंड कहा जाता था
 बावड़ी की सीढ़ियों पर छोटा छोटी मंदिर है इन मंदिरों में लकड़ी की नक्काशी की गई है
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